राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले जातीय समीकरण को साधने में जुटी बीजेपी

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राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से तैयारी तेज कर दी गई है. चर्चाओं के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राजस्थान में आने वाले चुनाव में भाजपा का चेहरा नहीं होंगी.

इसलिए पार्टी ने जाति के अंकगणित को सही करने के लिए आवश्यक उपाय किए हैं. पिछले महीने ही पार्टी ने राज्य इकाई का नेतृत्व करने के लिए जाट नेता को हटा कर एक ब्राह्मण चेहरे को चुना था. वहीं रविवार को एक अन्य राजपूत नेता के कद को बढ़ाकर पार्टी ने राजनीतिक रूप से शक्तिशाली राजपूत समुदाय को साधने का प्रयास किया है.

रविवार को जयपुर में विधायकों की बैठक में, पार्टी ने विपक्ष के उप नेता राजेंद्र राठौर को विपक्ष के नेता के रूप में पदोन्नत किया. गौरतलब है कि यह पद पार्टी के दिग्गज गुलाब चंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद खाली हुआ था. पिछले महीने ही पार्टी ने ब्राह्मण चेहरे और चित्तौड़गढ़ से सांसद सीपी जोशी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. जोशी ने सतीश पूनिया का स्थान लिया था, जिन्हें विपक्ष का उप नेता बनाया गया है . पार्टी की तरफ से तीनों समुदायों, जाट, राजपूत और ब्राह्मणों को खुश रखने की कोशिश की गई है.

बताते चलें कि 2018 में, बीजेपी वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव में गई थी, जिन्होंने दावा किया था कि राजस्थान में सभी 36 समुदाय में उनकी पकड़ है. वसुंधरा राजे ग्वालियर की एक क्षत्रिय परिवार से आती है. जिन्होंने जाट धौलपुर शाही परिवार में शादी की थी.उनकी बहू गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखती हैं.

2018 में विधानसभा चुनाव से पहले, पार्टी ने राजपूतों को रिझाने के लिए गजेंद्र सिंह शेखावत को राज्य इकाई प्रमुख के रूप में लाने का प्रयास किया था, जो आनंद पाल मुठभेड़ मामले पर वसुंधरा राजे से नाराज थे. लेकिन सुश्री राजे ने इसे रोक दिया था और अशोक परनामी भाजपा प्रमुख बने थे. विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इस बार के विधानसभा चुनाव में जैसी चर्चा है कि पार्टी वसुंधरा राजे से इतर सोच रही है ऐसे में पूरे राजस्थान में अपील वाले नेता की गैरमौजूदगी में जातिगत गणित को साधना बीजेपी के लिए बेहद जरूरी है.

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