उत्तरकाशी टनल हादसे का छठा दिन, फंसे हुए श्रमिकों को ट्रॉमा, हाइपोथर्मिया का खतरा

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उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल हादसे का आज छठा दिन है. बचाव दल सुरंग ढहने के लगभग बाद 120 घंटे से अधिक समय से मलबे में फंसे 40 निर्माण श्रमिकों को निकालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

सुरंग के भीतर श्रमिकों के लंबे समय तक रहने से उनके स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएं हो रही हैं. 12 नवंबर को, निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढह गया, जिससे 40 निर्माण श्रमिक मलबे में फंस गए. थाईलैंड और नॉर्वे की विशिष्ट बचाव टीमें, जिनमें 2018 में थाईलैंड की एक गुफा में फंसे बच्चों को सफलतापूर्वक बचाने वाली टीम भी शामिल है, चल रहे बचाव अभियान में सहायता के लिए शामिल हो गई हैं.

बचावकर्मियों ने मलबे में 24 मीटर तक खुदाई की है और फंसे हुए श्रमिकों को भोजन और ऑक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए चार पाइप लगाए हैं. हालांकि, डॉक्टरों ने फंसे हुए श्रमिकों के लिए पुनर्वास की आवश्यकता पर जोर दिया है. उन्हें डर है कि लंबे समय तक एक जगह कैद रहने से मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की दिक्‍कतों का सामना श्रमिकों को करना पड़ सकता है.

श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट, दिल्ली में सलाहकार नैदानिक ​​​​मनोवैज्ञानिक डॉ. अर्चना शर्मा ने पीटीआई को बताया, “यह एक बहुत ही दर्दनाक घटना है और उनकी वर्तमान मानसिकता बहुत आशंकित होगी, उनके भविष्य और उनके अस्तित्व के बारे में अनिश्चितता से भरी होगी. वे भयभीत, असहाय, आघातग्रस्त और समय में एक जगह खुद को रुका हुआ महसूस कर सकते हैं. वे वास्तव में स्थिति का सही अंदाजा लगाने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.”

नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा के निदेशक डॉ. अजय अग्रवाल ने कहा कि फंसे हुए श्रमिकों को एक बंद जगह में लंबे समय तक कैद रहने के कारण घबराहट के दौरे का भी अनुभव हो सकता है. डॉ. अग्रवाल ने पीटीआई को बताया, “इसके अलावा, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर जैसी स्थितियां भी उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकती हैं और ठंडे भूमिगत तापमान के लंबे समय तक संपर्क में रहने से संभवतः हाइपोथर्मिया हो सकता है और वे बेहोश हो सकते हैं.”

डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि निर्माण स्थलों पर अक्सर कई तरह के खतरे होते हैं, जिनमें मलबा गिरना एक बड़ी चिंता का विषय है. गिरने वाली वस्तुओं के प्रभाव से फ्रैक्चर और खुले घावों सहित गंभीर चोटें लग सकती हैं. अस्वच्छ स्थितियों के कारण ये चोटें और भी गंभीर हो सकती हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है.

फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के कार्डिएक साइंसेज के अध्यक्ष डॉ. अजय कौल ने कहा, “चूंकि सभी कर्मचारी एक बंद जगह में सामूहिक रूप से सांस ले रहे हैं, इसलिए कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ सकता है, जिससे सांस लेने में समस्या बढ़ सकती है. सुरंग के अंदर ऑक्सीजन की कमी से एस्फिक्सिया (घुटन) हो सकता है और यह एक गंभीर समस्या है.”

नई दिल्ली से एयरलिफ्ट की गई ‘अमेरिकन ऑगर’ मशीन की तैनाती ने बचाव प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत दिया. यह विशेष उपकरण, जो अपनी दक्षता और शक्ति के लिए जाना जाता है, अनुमानित 12 से 15 घंटों में 70 मीटर चट्टान को काटने की उम्मीद है, जिसका अधिकांश भाग बचाव प्रयासों के दौरान छत से नीचे आ गया था. मशीन 5 मीटर प्रति घंटे की गति से चलती है.

निर्माणाधीन सुरंग महत्वाकांक्षी चार धाम परियोजना का हिस्सा है, जो बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के हिंदू तीर्थ स्थलों तक कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए एक बुनियादी ढांचा है.

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