चीन कई वर्षों से यूरोप के लिए आर्थिक चुनौती बना हुआ है। लेकिन, अब यह आर्थिक आपदा बन सकता है।
चीन बड़े पैमाने पर सस्ते सामान का उत्पादन करता है। इनमें भारी सब्सिडी वाले इलेक्टि्रक वाहन, उपभोक्ता इलेक्ट्रानिक्स, खिलौने, वाणिज्यिक स्टील जैसे उत्पाद शामिल हैं। लेकिन, कारोबार की दुनिया में इसका अधिकांश हिस्सा अमेरिकी बाजार के लिए था।
अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इनमें से कई वस्तुओं पर 145 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। इससे यह डर बढ़ रहा है कि चीन के सस्ते माल से यूरोप पट जाएगा, जिससे फ्रांस, जर्मनी, इटली और शेष यूरोपीय संघ में स्थानीय उद्योग कमजोर हो जाएंगे।
व्यापार युद्ध के चक्रव्यूह में फंसा यूरोप
यूरोपीय संघ के ये देश अब खुद को चीन के साथ ट्रंप के बढ़ते व्यापार युद्ध के बीच खुद को फंसा हुआ पाते हैं। उनके नेता आत्मसमर्पण और टकराव के बीच एक महीन रेखा पर खड़े हैं, ताकि वे अतिरिक्त नुकसान से बच सकें।
काउंसिल ऑन फारेन रिलेशंस की वाशिंगटन स्थित फेलो लियाना फिक्स ने कहा कि चुनौती को आने में काफी समय लगा है, लेकिन यह आखिरकार यूरोपीय राजधानियों तक पहुंच ही गई है। यूरोप में एक आम चलन और भावना है कि इस समय यूरोप को अपने लिए खड़ा होना होगा और अपनी रक्षा करनी होगी।
यूरोपीय आयोग की रणनीति
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वान डेर लेयेन ने चीन के साथ रचनात्मक रूप से जुड़ने का वादा किया है। हालांकि, उन्होंने अमेरिकी टैरिफ के अप्रत्यक्ष प्रभावों के बारे में चेतावनी दी है और चीनी वस्तुओं के प्रवाह पर पैनी नजर रखने का संकल्प लिया है। एक नया टास्क फोर्स डंपिंग पर नजर रखने के लिए आयात की निगरानी करेगा।