दिवाली सनातन धर्म में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दिवाली का पर्व मनाया जाता है।
दिवाली आते ही चारों ओर दीयों की जगमगाहट बनी रहती है। दीये जलाए जाने के जारण दिवाली को हम दीपोत्सव के नाम से भी जानते हैं। दिवाली पर आजकल वैसे तो लाइट्स, मोमबत्ती या फ्लोटिंग कैंडल्स की डिमांड बहुत है लेकिन मिट्टी के दीपकों की बात ही निराली है।
मिट्टी के दीयों की जगमगाहट अलग ही नजर आती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि धनतेरस से लेकर दिवाली तक जीतने भी दिये जलाए जाते हैं उनकी संख्याओं में लगातार परिवर्तन आता रहता है। क्या आप दीयों की संख्या में हो रही परिवर्तन के पीछे का कारण जानते हैं। चलिए आपको बताते हैं इसके पीछे का कारण क्या है और मान्यताओं के आधार पर धनतेरस से दिवाली तक कितने दीये प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।
धनतेरस पर प्रज्ज्वलित होते हैं इतने दीपक
धनतेरस पर जो दीपदान किया जाता है वह यमराज के लिए होता है। आप कह सकते हैं की यमराज के निमित्त घर के चारों ओर दीप जलाकर उनकी पूजा की जाती है। धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 और घर के अंदर भी 13 दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।
लेकिन इस दिन दीपक जलाने का नियम भी है। धनतेरस पर यम के नाम का दीपक परिवार के सभी सदस्यों के घर आने और खाने-पीने के बाद सोते समय जलाया जाता है। इस दिन पुराने दीयों का प्रयोग किया जाता है जिसमें सरसों का तेल डाला जाता है।
छोटी दिवाली पर जलाएं इतने दीये
धनतेरस बाद आती है नरक चतुर्दशी। इस दिन को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इस बार नरक चतुर्दशी और दिवाली एक ही दिन यानि 4 नवंबर, दिन गुरुवार को है। नियमानुसार रूप चौदस या छोटी दिवाली के दिन 14 दीपक जलाए जाते हैं।
लेकिन घर में छोटी दीवाली के दिन मुख्यत: पांच दीये प्रज्ज्वलित किए जाने की परंपरा है। इनमें से एक दीया घर के पूजा पाठ वाले स्थान, दूसरा रसोई घर में, तीसरा पीने का पानी रखने के स्थान पर, चौथा दीया पीपल या वट के पेड़ के नीचे और पांचवा दिया घर के मुख्य द्वार पर जलाना चाहिए।
घर के मुख्य द्वार पर जलाया जाने वाला दीया चौमुखी होना होना चाहिए और उसमें चार लंबी बत्तियों को जलाना चाहिए। इसके अलावा आप और भी दीए जलाना चाहें तो 7, 13, 14 या 17 की संख्या में जला सकते हैं।
दिवाली पर जलाएं इतने दीये
नरक चतुर्दशी के बाद आता है सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख दिन जिसे दिवाली कहते हैं। दिवाली पर विशेष रूप से मां लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन होता है। मान्यता है कि कार्तिक मास की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है।
अत: इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं, ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपों से वातावरण रोशन हो जाए। दिवाली के दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश तथा आभूषण आदि का पूजन करके 13 अथवा 26 दीपकों के मध्य 1 तेल का चौमुखा दीपक रखकर उसकी चारों बातियों को प्रज्वलित करना चाहिए एवं दीपमाला का पूजन करके उन दीपों को घर में प्रत्येक स्थान पर रखें एवं प्रयास करें चौमुख दीया रातभर लक्ष्मी जी के सम्मुख जलता रहे।