दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध फिल्म निर्माता कसीनाधुनी विश्वनाथ का गुरुवार रात एक निजी अस्पताल में निधन हो गया.
वह 92 साल के थे. के विश्वनाथ कुछ समय से अस्वस्थ थे और उम्र संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे. ‘कला तपस्वी’ के नाम से लोकप्रिय विश्वनाथ का जन्म फरवरी 1930 में आंध्र प्रदेश में हुआ था. न केवल तेलुगु सिनेमा में बल्कि तमिल और हिंदी फिल्मों में भी एक प्रमुख नाम के विश्वनाथ को 2016 में 48वां दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला था, जो भारतीय सिनेमा में सर्वोच्च सम्मान है.
मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने विश्वनाथ के निधन पर शोक व्यक्त किया है.
साउंड आर्टिस्ट के रूप में अपनी यात्रा शुरू करने वाले विश्वनाथ ने ‘शंकराभरणम’, ‘सागर संगमम’, ‘स्वाति मुत्यम’, ‘सप्तपदी’, ‘कामचोर’, ‘संजोग’ और ‘जाग उठा इंसान’ जैसी पुरस्कार विजेता फिल्मों का निर्देशन किया. उनका लंबे करियर में कैमरे के सामने समान रूप से सफल कार्यकाल भी शामिल था.
उनके अन्य सम्मानों में 1992 में पद्म श्री, पांच राष्ट्रीय पुरस्कार, 20 नंदी पुरस्कार (आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए) और लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित 10 फिल्मफेयर ट्राफियां शामिल हैं.
के विश्वनाथ ने 1965 से 50 फिल्में बनाईं, तेलुगु फिल्म उद्योग में एक प्रसिद्ध फिल्म निर्माता थे. वह तमिल और हिंदी सिनेमा में भी सक्रिय रहे थे. उन्होंने “आत्मा गोवरम” के साथ एक निर्देशक के रूप में शुरुआत की, जिसमें अक्किनेनी नागेश्वर राव ने अभिनय किया और सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए नंदी पुरस्कार जीता.
फिल्म निर्माता ने इसके बाद “चेल्लेली कपूरम”, “ओ सीता कथा”, “जीवन ज्योति” और “सारदा” के साथ काम किया. विश्वनाथ ने “स्वराभिषेकम” (जिसका उन्होंने निर्देशन भी किया था), “पांडुरंगडु”, “नरसिम्हा नायडू”, “लक्ष्मी नरसिम्हा” और “सीमासिम्हा”, “कुरुथिपुनल”, “कक्कई सिरगिनिले” और “जैसी फिल्मों में काम करते हुए मुख्यधारा के अभिनय में भी कदम रखा.