दिल्ली सेवा बिल आज राज्यसभा में किया जाएगा पेश, AAP और कांग्रेस ने सांसदों को जारी किया व्हिप

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विवादास्पद दिल्ली सेवा बिल आज चर्चा और मतदान के लिए राज्यसभा में पेश किया जाएगा.

हालांकि विपक्ष ने इसका कड़ा विरोध किया है, लेकिन इस बिल पर केंद्र को नवीन पटनायक की बीजेडी और आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस का साथ मिल रहा है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) बिल, 2023, – जो उस अध्यादेश की जगह लेता है, जिसने दिल्ली सरकार से नौकरशाहों का नियंत्रण छीन लिया था. ये पहले ही लोकसभा परीक्षण पास कर चुका है. गुरुवार को विपक्ष के वॉकआउट के बीच इसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया.

इस पर राज्यसभा में अड़चन की आशंका थी, जहां एनडीए को अभी बहुमत का आंकड़ा पार करना बाकी है. राज्यसभा की वर्तमान सदस्य संख्या 237 है और बहुमत का आंकड़ा 119 है.

भाजपा और उसके सहयोगियों के पास 105 सदस्य हैं और उन्हें बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन मिलेगा, जिनमें से प्रत्येक के पास नौ सांसद हैं. सत्तारूढ़ दल को पांच नामांकित और दो निर्दलीय सांसदों के समर्थन का भी भरोसा है, जिससे उसकी संख्या 130 हो जाती है.

विपक्षी गठबंधन इंडिया के पास 104 सांसद हैं. उनमें से कुछ की तबीयत ठीक नहीं हैं और कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकते हैं. आम आदमी पार्टी के संजय सिंह को सदन से निलंबित कर दिया गया है.

मायावती की बहुजन समाज पार्टी और दो अन्य दलों, जिनके एक-एक सदस्य हैं, उनके भी भाग लेने की संभावना नहीं है. किसी भी अनुपस्थिति से बहुमत का आंकड़ा कम हो जाएगा और बिल पारित होने की संभावना है.

विपक्ष, जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रयासों से बिल को रोकने के लिए लामबंद हुआ. उन्होंने ये स्वीकारा है कि संख्याएं उनके पक्ष में नहीं हैं लेकिन उनका कहना है कि बहस से उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिलेगा.

यह बिल जिस अध्यादेश की जगह लेगा, उसे मई में पारित किया गया था. इसने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया, जिसने दिल्ली का प्रशासनिक नियंत्रण निर्वाचित सरकार को सौंप दिया था. केंद्र और अरविंद केजरीवाल सरकार के बीच आठ साल तक चली खींचतान के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि चुनी हुई सरकार दिल्ली की बॉस है.

अध्यादेश ने एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाया, जिसे दिल्ली में सेवारत नौकरशाहों की पोस्टिंग और स्थानांतरण का काम सौंपा गया है. मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव सदस्य हैं जो मुद्दों पर मतदान कर सकते हैं, अंतिम मध्यस्थ उपराज्यपाल हैं.

केजरीवाल की AAP ने तर्क दिया है कि नया नियम एक मिसाल कायम करेगा जो केंद्र को किसी भी राज्य में किसी भी निर्वाचित सरकार को किनारे करने और शासन का नियंत्रण लेने में सक्षम बनाएगा. केजरीवाल ने कहा, यह अध्यादेश दिल्ली के जनादेश को नकारता है – जिसे आप ने दो बार हासिल किया है – और यह लोगों के साथ किया गया धोखा है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “विपक्ष की प्राथमिकता अपने गठबंधन को बचाना है. विपक्ष को मणिपुर की चिंता नहीं है. दिल्ली एक राज्य नहीं बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है. संसद को दिल्ली के लिए कानून बनाने का अधिकार है.” उन्होंने कहा, ”उच्च सदन में विधेयक लाएंगे.”

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