जनता दल-यूनाइटेड (जद-यू) के राष्ट्रीय महासचिव मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने मंगलवार को पार्टी छोड़ दी और दावा किया कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ फिर से गठबंधन करने से ‘‘आहत” होकर उन्होंने यह फैसला किया.
फातमी पहले राजद (राष्ट्रीय जनता दल) में थे. उन्होंने राजद में लौटने की संभावना से इनकार नहीं किया और यह स्वीकार किया कि वह अपनी पसंद की सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं .
फातमी ने फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैंने अपना राजनीतिक करियर 1980 के दशक के अंत में शुरू किया था जब लालू प्रसाद (राजद अध्यक्ष), नीतीश कुमार और मैं सभी एक साथ थे. बीच में जो कुछ भी हुआ हो, मुझे यह देखकर खुशी हुई कि दोनों ने अपने मतभेद दूर किए और हमारी पार्टी ने वस्तुतः तेजस्वी यादव को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था.”
उन्होंने कहा, ‘‘एक अच्छी गठबंधन सरकार थी और नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभालने वाले नेताओं में से एक के रूप में लोकप्रियता हासिल कर रहे थे, लेकिन जब जनवरी में उन्होंने पाला बदला तो मैं हैरान रह गया. उन्होंने इसके लिए कोई ठोस कारण भी नहीं बताया.”
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘तब से मैं असहज महसूस कर रहा था और आखिरकार, अपने नैतिक मूल्यों के साथ न्याय करने के लिए मैंने अपने पार्टी पद और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. मैं मानता हूं कि इसके राजनीतिक कारण भी हैं. जब 2019 में मुझे लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला था तो मैंने राजद से नाता तोड़ लिया था.”
उन्होंने कहा कि वह इस बार भी चुनाव लडना चाहते हैं.
फातमी ने चार बार दरभंगा लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया है. उन्होंने कहा कि उत्तर बिहार में महत्वपूर्ण मुस्लिम आबादी वाला एक और निर्वाचन क्षेत्र मधुबनी है, जो पांच साल पहले उनकी पसंद की सीट थी और इस पर अबकी बार भी उनकी नजर है.
यह घटनाक्रम बिहार में राजग द्वारा सीट बंटवारे के उसके फार्मूले की घोषणा के एक दिन बाद आया है जहां भाजपा दरभंगा और मधुबनी समेत 17 सीट पर चुनाव लड़ेगी यानी फातमी के जदयू के उम्मीदवार के तौर पर इन दोनों सीट से चुनाव लड़ने की संभावना खत्म हो चुकी हैं. फातमी दरभंगा सीट चार बार जीत चुके हैं.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के पहले कार्यकाल में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रहे फातमी ने पांच साल पहले राजद द्वारा एक अन्य प्रमुख मुस्लिम चेहरे अब्दुल बारी सिद्दीकी को दरभंगा से मैदान में उतारने और तत्कालीन गठबंधन सहयोगी विकासशील इंसान के लिए मधुबनी सीट छोड़ने के विरोध में राजद को छोड़ दिया था. उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘जदयू छोड़ने के बाद मैंने लालू जी से बात नहीं की लेकिन हम पहले लंबे समय तक साथ रहे हैं. यहां तक कि जब मैं उनकी पार्टी में नहीं था, तब भी मैं उनके स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिए उनसे मिलता रहता था. हम निकट भविष्य में उनसे मुलाकात कर सकते हैं. सब कुछ सार्वजनिक कर दिया जाएगा.”
यह घटनाक्रम लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली पार्टी जदयू के लिए एक झटका है. जदयू ने फातमी के इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन पर ‘‘विश्वासघात” करने का आरोप लगाया.
विधान पार्षद खालिद अनवर, पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अशरफ हुसैन और अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ अन्य पूर्व विधायकों ने जदयू के प्रदेश मुख्यालय में मंगलवार को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संयुक्त रूप से संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि फातमी ने जदयू के साथ विश्वासघात किया है और जनता उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में जरूर सबक सिखाएगी.
उन्होंने कहा, ‘‘वह कसम खाया करते थे कि अंतिम सांस तक जदयू में रहेंगे लेकिन आज पार्टी को धोखा देकर नैतिक मूल्यों की दुहाई दे रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया, उनके बेटे को चुनाव लड़ने का मौका दिया, फिर भी उन्होंने नीतीश कुमार के साथ छल किया.”
जदयू नेताओं ने फातमी के बारे में कहा, ‘‘उनके जाने से हमारी पार्टी और हमारे नेता पर कोई राजनीतिक असर नहीं पड़ेगा. लालू प्रसाद यादव और अली अशरफ फातमी में एक बात समान है कि दोनों नेता सिर्फ अपने परिवार की चिंता करते हैं. उन्हें समाज की कोई चिंता नहीं है. वे सौदा करने में माहिर हैं और हमेशा से यही उनकी राजनीति का चरित्र रहा है.”