कांग्रेस ने शुक्रवार को शिमला में नए विधायकों की बैठक बुलाई है। इसमें नए सीएम के लिए कांग्रेस अध्यक्ष को अधिकृत किया जाएगा।
बैठक में हिमाचल प्रभारी राजीव शुक्ला और पर्यवेक्षक भी पहुंचेंगे। फिलहाल, सीएम की दावेदारी के लिए प्रचार समिति के प्रमुख सुखविंद्र सिंह सुक्खू और पूर्व सीएम दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह के नाम सामने आ रहे हैं।
दो खेमों में खींचतान…
कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में बहुमत से जीत तो हासिल कर ली है, मगर सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि मुख्यमंत्री कौन होगा। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में कांग्रेस के दो खेमों की लड़ाई बढ़ेगी। हिमाचल में एक खेमा कांग्रेस की प्रचार समिति के प्रमुख सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में उभर चुका है। कांग्रेस का दूसरा खेमा वह है, जिसका केंद्र बिंदु ‘हॉलीलॉज’ है। हॉलीलॉज पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह का आवास है, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह खुद मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में खड़ी हो चुकी हैं।
इस बार प्रदेश में बेशक विधानसभा चुनाव कांग्रेस की पिछली सरकारों में लगातार छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के बगैर हुआ हो, इसके बावजूद इस चुनाव में कांग्रेस ने वीरभद्र के देहांत के बाद उनके प्रति सांत्वना को भुनाने का पूरा प्रयास किया। प्रतिभा सिंह को कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ही नहीं बनाया, बल्कि उनका नया नामकरण प्रतिभा वीरभद्र सिंह के रूप में किया। प्रतिभा वीरभद्र सिंह ने मंडी का लोकसभा चुनाव भी इसी नाम के साथ लड़ा था। उस समय मेें भी उपचुनाव में कांग्रेस ने न केवल यहां बल्कि तीन विधानसभा क्षेत्रों में भी जीत हासिल की।
अब प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में हॉलीलॉज के समर्थक विधायक एकजुट होने लग गए हैं। एक प्रमुख खेमा वह है जो हॉलीलॉज के विरोध में रहता आया है। इस खेमे के प्रमुख नेता सुखविंद्र सिंह सुक्खू हैं, जो छह साल पार्टी प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं और पार्टी अध्यक्ष रहते हुए उनके वीरभद्र सिंह से संबंध ठीक नहीं रहे हैं। वह भी समुदाय से राजपूत हैं। सुक्खू और हॉलीलॉज के इन खेमों के साथ जीते हुए विधायकों के दो बड़े वर्ग खड़े होने को तैयार हैं।
भाजपा की नाकामी…
हिमाचल में कांग्रेस के छह बार के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के बिना यह पहला चुनाव था। हिमाचल का रिवाज हर बार सरकार बदल देने का है लेकिन वीरभद्र व मुख्यमंत्री के चेहरे के बिना कांग्रेस के लिए यह आसान नहीं था। कर्मचारियों की नाराजगी को पढ़ने में भाजपा की केंद्र व प्रदेश की जयराम सरकार असफल रही।