जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के कुपवाड़ा जिले में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ का मामला सामने आया है.
जानकारी के मुताबिक, इलाके के लोलाब वन क्षेत्र में संयुक्त सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई है. दोनों तरफ से गोलीबारी जारी है. इससे पहले 3 नवंबर को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में रविवार को ग्रेनेड हमला हुआ था. यह हमला मुख्य श्रीनगर में टीआरसी ऑफिस के पास संडे बाजार में हुआ. ब्लास्ट की चपेट में संडे बाजार की भीड़ आ गई, जिसमें 10 लोगों के घायल होने की खबर आई थी. एक दिन पहले ही खानयार में सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई थी, जिसमें सुरक्षाबलों ने एक आतंकी को ढेर कर दिया था.
इस मामले के बाद, जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर के टीआरसी और रविवार बाजार पर ग्रेनेड हमले की निंदा की थी. उन्होंने कहा था कि नागरिकों को निशाना बनाना उचित नहीं है.
संडे मार्केट में हमला
पिछले महीने के पहले हफ्ते में श्रीनगर के लाल चौक में रविवार को एक आतंकी हमला हुआ. संडे मार्केट पर हुए हमले में दुकानदारों और खरीदारों समेत 12 लोग जख्मी हुए. इससे एक रोज पहले खायनेर में आर्मी और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हुई थी. टैरर अटैक और मुठभेड़ की घटनाएं बीते कुछ ही समय में तेजी से बढ़ीं. अक्टूबर में हुए हमलों के बीच कई आतंकी समूहों का नाम आया. कश्मीर में इन दिनों कई छोटे-मोटे कई संगठन बन चुके, जो प्रतिरोध के नाम पर हिंसा फैला रहे हैं.
पहले से अब में क्या फर्क आया
काम करने का इनका तरीका, आतंक के पुराने ढंग से एकदम अलग है. पहले हमलों का पैटर्न अलग हुआ करता था. थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, लाइन ऑफ कंट्रोल के उस पार से आतंकी आते और हमलों को अंजाम देते थे. वे आमतौर पर गुरिल्ला रणनीति से चुपचाप अटैक करते और वापस घाटी के घने जंगलों में गुम हो जाते. कई बार वे स्थानीय लोगों को मदद से जम्मू-कश्मीर के भीतर ही छिपे रहते और नेटवर्क बढ़ाते थे. चूंकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और हमारे कश्मीर के लोगों के चेहरे-मोहरे और भाषा में खास अंतर नहीं, इससे वे आसानी से पकड़ में नहीं आते थे.
आतंकवादियों की नई पौध ज्यादा शातिर
अब इनकी जगह हाइब्रिड मिलिटेंट्स ने ले ली है. ये रैंडम कश्मीरी युवा होते हैं, जिनकी कोई क्रिमिनल हिस्ट्री नहीं होती. वे ऑनलाइन माध्यम से रेजिस्टेंस ग्रुप से जुड़ते हैं. उनकी ट्रेनिंग होती है, टागरेट तय होता है. इसके साथ रेकी की जाती है और फिर तय समय पर वारदात को अंजाम देने के साथ आतंकी गायब हो जाते हैं. चूंकि इनका कोई रिकॉर्ड नहीं होता, लिहाजा उन्हें पकड़ना भी आसान नहीं. ये रैंडम लोग वापस अपने गांव-शहर जाकर आम जिंदगी में रम जाते हैं. इन्हें ही हाइब्रिड मिलिटेंट कहा जा रहा है.