विपक्ष द्वारा लाए 716 ड्राफ्ट बिल में से एक पर भी नहीं हुई चर्चा, रबर स्टाम्प बनी तुर्किए की संसद

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तुर्किए के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोआन को सत्ता पर काबिज हुए 20 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है।

और इस दौरान एर्दोआन ने सत्ता पर इस कदर नियंत्रण कर लिया है कि तुर्किए की संसद अब महज एक रबर स्टाम्प बनकर रह गई है। एक समय तुर्किए से मध्य पूर्व और अरब देशों के लिए रोल मॉडल बनने की उम्मीद की जाती थी लेकिन यह सफर ज्यादा लंबा नहीं चल सका।

बगावत ने एर्दोआन को दिया मौका
16 जुलाई 2016 में एर्दोआन के खिलाफ बगावत हुई। हालांकि यह बगावत असफल रही लेकिन इसने एर्दोआन को वो मौका दे दिया, जिसकी तलाश में वह लंबे समय से थे। दरअसल बगावत के बाद रजब तैय्यब एर्दोआन ने सत्ता में कई बदलाव किए, जिससे एर्दोआन ने तुर्किए के संविधान की उस ताकत को खत्म कर दिया, जिससे सरकार पर नियंत्रण किया जाता था। साथ ही एर्दोआन ने बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों, जजों, शिक्षा जगत के लोगों, स्वास्थ्य कर्मियों और सैन्य अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया। अब रजब तैय्यब एर्दोआन का देश की न्यायपालिका की नियुक्तियों और पूरी व्यवस्था पर पूरा नियंत्रण है।

रबर स्टाम्प बनी तुर्किए की ग्रैंड नेशनल असेंबली
नॉर्डिक रिसर्च मॉनिटरिंग नेटवर्क चलाने वाले अब्दुल्लाह बोजकुर्त ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि अक्टूबर 2021 से लेकर सितंबर 2022 तक विपक्ष ने 716 ड्राफ्ट बिल तुर्किए की संसद में पेश किए लेकिन उनमें से एक पर भी चर्चा नहीं हुई। यह अपने आप में वर्ल्ड रिकॉर्ड है। वहीं सत्ताधारी पार्टी एकेपी और इसकी सहयोगी एमएचपी ने इस समयअवधि में 80 ड्राफ्ट बिल पेश किए और वह सभी मंजूर कर लिए गए और अंत में कानून बन गए। यह दिखाता है कि तुर्किए में विपक्ष महज बहस करने तक सीमित रह गया है और उससे कानून बनाने की ताकत छीन ली गई है।

एक और चिंताजनक तथ्य ये है कि कई संसदीय समितियों की एक बैठक तक नहीं हुई है और कई समितियों की सिर्फ एक या दो बैठकें ही हुई हैं। लोकतांत्रिक देशों में संसद का काम सरकार के काम की निगरानी करना होता है। इसमें सवाल पूछने की आजादी होती है, जिससे जवाबदेही, पारदर्शिता और बेहतर प्रशासन सुनिश्चित होता है लेकिन तुर्किए की संसद में सवाल पूछने के अधिकार को ही लगभग खत्म कर दिया गया है और जो सवाल पूछे भी जाते हैं, उनमें से अधिकतर के जवाब नहीं दिए जाते।

एक रिपोर्ट के अनुसार, तुर्किए की सरकार से मौखिक तौर पर 15,664 सवाल पूछे गए लेकिन इनमें से महज 1298 सवालों के ही जवाब दिए गए। न्याय मंत्रालय से 2145 सवाल पूछे गए और उनमें से महज तीन के ही जवाब दिए गए। वहीं आंतरिक मंत्रालय से 1597 सवाल पूछे गए और इनमें से सिर्फ छह के जवाब मिले। इन आंकड़ों से पता चलता है कि तुर्किए की संसद में पारदर्शिता, जवाबदेही पूरी तरह से नदारद है।

बजट भी बिना चर्चा के पास
लोकतंत्र में जब सरकारें बजट पेश करती हैं तो उसे बहस के लिए संसद में पेश किया जाता है। जहां उस पर बहस होती है और सरकारें विपक्ष की आपत्ति पर बजट प्रावधानों में बदलाव भी करते हैं लेकिन तुर्किए में एर्दोआन सरकार द्वारा बनाए गए बजट को कुछ संबंधित संसदीय समितियों के पास भेजा जाता है और इन समितियों में भी सत्ताधारी पार्टी के लोग ही होते हैं और फिर बिना ज्यादा बदलाव के बजट पास हो जाता है।

तुर्किए में विपक्षी पार्टियां कई अहम मुद्दों जैसे भूकंप को लेकर तुर्किए की तैयारी, टैक्स नियमों और ऑफशोर अकाउंट के मुद्दे पर जांच के लिए आयोग बनाने की मांग कर रही हैं लेकिन सत्ताधारी पार्टियों द्वारा उनकी इन मांगों को लगातार खारिज किया जा रहा है। यहां तक कि तुर्किए की संसद के स्पीकर भी सत्ताधारी पार्टी एकेपी के डिप्टी चेयरमैन नुमान कुर्तुलमस हैं। जिससे सत्ताधारी पार्टी बिना किसी परेशानी के कानूनों को संसद से पास करा लेती हैं।

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