आपातकाल के 49 साल… 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी, इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश ने बदल दी थी पूरी दिशा

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राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है.. रेडियो पर इन शब्दों के साथ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी।

यह 21 मार्च, 1977 तक चला था। लगभग दो साल की इस अवधि को भारतीय लोकतंत्र पर एक काला धब्बा माना जाता है। इस दौरान नागरिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हुआ था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
आपातकाल की मूल वजह 12 जून, 1975 को आया इलाहाबाद हाई कोर्ट का वह फैसला था जिसमें इंदिरा गांधी के रायबरेली से सांसद के तौर पर चुनाव को अवैध करार दिया गया था। 1971 के आम चुनाव में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिद्वंद्वी राज नारायण ने उनके खिलाफ चुनाव में हेरफेर करने के लिए सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। दोषी पाए जाने पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया और अगले छह साल के उनके चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी गई।

रातों रात जेलखाने में तब्दील हो गया देश
आपातकाल की घोषणा के कुछ घंटे के भीतर की प्रमुख समाचार पत्रों के कार्यालयों में बिजली की आपूर्ति काट दी गई थी और जयप्रकाश नारायण, राज नारायण, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, जार्ज फर्नांडिस सहित कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 का उपयोग करते हुए इंदिरा गांधी ने खुद को असाधारण शक्तियां प्रदान कीं।

आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम (एमआइएसए) को एक अध्यादेश के माध्यम से संशोधित कर दिया ताकि किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति दी जा सके।

भारतीय संविधान का सबसे विवादास्पद 42वां संशोधन पारित किया गया। इसने न्यायपालिका की शक्ति को कम कर दिया। इस संशोधन ने संविधान की मूल संरचना को बदल दिया था।

आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जमात-ए-इस्लामी सहित 26 संगठनों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल के मुखर आलोचक रहे फिल्मी कलाकारों को भी इसका दंश झेलना पड़ा। किशोर कुमार के गानों को रेडियो और दूरदर्शन पर बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। देव आनंद को भी अनौपचारिक प्रतिबंध का सामना करना पड़ा था।

60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी
आपातकाल के दौरान नसबंदी सबसे दमनकारी अभियान साबित हुआ था। नसबंदी का फैसला लागू कराने का जिम्मा संजय गांधी पर था। कम समय में अपने आप को साबित करने के लिए संजय गांधी ने इस फैसले को लेकर बेहद कड़ा रुख अपनाया। इस दौरान घरों में घुसकर, बसों से उतारकर और लोभ-लालच देकर लोगों की नसबंदी की गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ एक साल के भीतर देशभर में 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी कर दी गई थी।

शाह आयोग का गठन
1977 में सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी ने आपातकाल की अवधि के दौरान सत्ता के दुरुपयोग, कदाचार और ज्यादतियों के विभिन्न पहलुओं की जांच के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेसी शाह की अध्यक्षता में शाह आयोग का गठन किया था। आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि आपातकाल के दौरान एक लाख से ज्यादा लोगों को निवारक हिरासत कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया था।

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