प्रदूषण कम होने से दिल्ली, हरियाणा और बिहार के लोगों की नौ से बारह साल तक बढ़ सकती है आयु

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भारत में डायबिटीज, कैंसर और ह्दयाघात से होने वाली मौत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।

सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की रिपोर्ट में सामने आया कि 26 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कुल मौतों में से 50 प्रतिशत गैर-संचारी रोगों के कारण होती हैं। इन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली, गोवा, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना और देश के पूर्वोत्तर भागों के अधिकांश राज्य शामिल हैं।

रिपोर्ट में जिस तरह के आंकड़ों का उल्लेख किया गया है, उससे वाकई कुछ चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई है। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को ही लें। 100 में से 63 से थोड़ा अधिक स्कोर के साथ, भारत इन लक्ष्यों को पूरा करने की अपनी तैयारियों के मामले में 166 देशों में 112 वें स्थान पर है।

सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट के रिचर्ड महापात्रा कहते हैं, “सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रति व्यक्ति कम स्वास्थ्य व्यय, गैर-संचारी रोगों की उच्च घटनाओं, अक्षय ऊर्जा उत्पादन में गिरावट, अपर्याप्त फसल बीमा कवरेज और बिगड़ती मिट्टी की सेहत से जूझ रहे हैं।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि नौ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में वायु प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है कि उनके पीएम 2.5 के स्तर को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुशंसित मानकों तक कम करने से उनके निवासियों का औसत जीवनकाल पांच साल और तीन महीने बढ़ सकता है। जीवन प्रत्याशा में उच्च संभावित वृद्धि का संकेत देने वाले राज्यों में दिल्ली (11 वर्ष और 10 महीने), उत्तर प्रदेश (8 वर्ष और 10 महीने), हरियाणा (8 वर्ष और 4 महीने) और बिहार (7 वर्ष और 11 महीने) शामिल हैं।

डायबिटीज तेजी से पैर पसार रही

द लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार मौजूदा समय में करीब 52.9 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। जो पुरुषों, महिलाओं और हर उम्र के बच्चों को प्रभावित कर रहा है। वहीं अंदेशा है कि अगले 27 वर्षों में मधुमेह के साथ जिंदगी जीने को मजबूर लोगों का यह आंकड़ा बढ़कर 130 करोड़ पर पहुंच जाएगा। रिसर्च के मुताबिक इसमें से ज्यादातर लोग टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित होंगें। यह एक ऐसी स्थिति है जब शरीर समय के साथ पर्याप्त इन्सुलिन के निर्माण की क्षमता खो देता है।

लखनऊ के रेजेंसी सुपरस्पेशियलिटी हास्पिटल के डॉ यश जावेरी कहते हैं कि शरीर में इंसुलिन की कमी से डायबिटीज होता है। यह आनुवंशिक, उम्र बढ़ने पर और मोटापे के कारण होता है। भारत डायबिटीज की विश्व राजधानी है। कोरोना के बाद भारत समेत पूरी दुनिया में डायबिटीज बढ़ा है। डायबिटीज में परहेज रखना पड़ता है। परहेज न रखने के परिणाम बुरे होते हैं। डायबिटीज का समय से इलाज जरूरी है। इसलिए हेल्थ चेकअप बेहद जरूरी है। समय-समय पर जांच जरूरी है। एक बार जब आपको डायबिटीज हो जाए तो आपको उसके दुष्परिणामों की जानकारी जरूरी है। जानकारी के साथ ही सतर्क भी रहना है कि कोई कॉम्प्लिकेशन तो नहीं हो रहा है। ऐसा होते ही डॉक्टर से संपर्क करें। आपको डॉक्टर की सलाह का पालन करना है और सेल्फ मॉनिटरिंग भी जरूरी है। यानी अपने ग्लूकोज और शुगर की जांच ग्लूकोमीटर से करते हैं। और शरीर स्किन की जांच करते रहते हैं। डायबिटीज शरीर के कई अंगों पर प्रभाव पड़ता है और किडनी, लीवर की खतरा बढ़ता है। वहीं दूसरी बीमारियों का प्रभाव भी बढ़ जाता है। इसलिए सेहतमंद जीवनशैली जरूरी है। जिसमें आहार, वेट मैनेजमेंट और व्यायाम जरूरी है। वहीं अगर आपको प्री डायबिटीज है तो आपको अपनी लाइफस्टाइल बदल लेनी चाहिए।

क्‍या है डायबिटीज

डायबिटीज जिसे सामान्यतः मधुमेह कहा जाता है। एक ऐसी बीमारी है जिसमें खून में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है। अमेरिका में यह मृत्यु का आठवां और अंधेपन का तीसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है। आजकल पहले से कहीं ज्यादा संख्या में युवक और यहां तक की बच्चे भी मधुमेह से ग्रस्त हो रहे हैं। निश्चित रूप से इसका एक बड़ा कारण पिछले 4-5 दशकों में चीनी, मैदा और ओजहीन खाद्य उत्पादों में किए जाने वाले एक्सपेरिमेंट्स हैं।

डायबिटीज के प्रकार

टाइप 1 डायबिटीज

टाइप 1 डायबिटीज बचपन में या किशोरावस्था में अचानक इन्सुलिन के उत्पादन की कमी होने से होने वाली बीमारी है। इसमें इन्सुलिन हार्मोन बनना पूरी तरह बंद हो जाता है। ऐसा किसी एंटीबॉडी की वजह से बीटा सेल्‍स के पूरी तरह काम करना बंद करने से होता है। ऐसे में शरीर में ग्‍लूकोज की बढ़ी हुई मात्रा को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन के इंजेक्शन की जरूरत होती है। इसके मरीज काफी कम होते हैं।

टाइप 2 डायबिटीज

टाइप 2 डायबिटीज आमतौर पर 30 साल की उम्र के बाद धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है। इससे प्रभावित ज्यादातर लोगों का वजन सामान्य से ज्‍यादा होता है या उन्‍हें पेट के मोटापे की समस्या होती है। यह कई बार आनुवांशिक होता है, तो कई मामलों खराब जीवनशैली से संबंधित होता है। इसमें इंसुलिन कम मात्रा में बनता है या पेंक्रियाज सही से काम नहीं कर रहा होता है। डायबिटीज के 90 फीसदी मरीज इसी कैटेगिरी में आते हैं। एक्‍सरसाइज, बैलेंस्ड डाइट और दवाइयों से इसे कंट्रोल में रखा जा सकता है।

भारत में बढ़ रहे हार्ट अटैक के मामले

भारत और चीन में हार्ट फेल के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे है। भारत और चीन जैसे देशों में वायु प्रदूषण भी कार्डियोवास्कलुर रोग और सांस की बीमारी जैसे रोगों का प्रमुख कारण है। दुनिया भर में हार्ट फेल से होने वाली मौतों के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। अकेले भारत और चीन में विश्व के 46.5 फीसदी नए मामले सामने आए हैं। यह खुलासा यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित शोध में हुआ है। लैंसेट’ में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक इस्केमिक (आईएचडी) हृदय रोग के दुनियाभर में मामलों का करीब चौथाई हिस्सा अकेले भारत में होता है।

शोध के मुताबिक 2017 में हार्ट फेल के केसों की संख्या 64.3 मिलियन थी जिसमें 29.5 मिलियन पुरुष थे जबकि महिलाओं की संख्या 34.8 मिलियन थी। रिपोर्ट के अनुसार 1990 से 2017 के बीच हार्ट फेल के मामलों में 91.9 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। अध्ययन के अनुसार 1990 से 2017 के दौरान हार्ट फेल के मामले करीब-करीब दोगुने हो गए है।

यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित शोध के अनुसार हार्ट फेल के मामले 70 से 74 साल के पुरुषों में अधिक है। वहीं 75-79 साल की महिलाओं में हार्ट फेल के मामले ज्यादा है। प्रमुख बात यह है कि 70 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में हार्ट फेल के मामले अधिक है। रिपोर्ट में बड़ी बात यह है कि हार्ट फेल के मामले 1990-2017 के दौरान चीन और भारत में सबसे अधिक बढ़े हैं। चीन में हार्ट फेल के मामले 29.9 फीसद बढ़े है वहीं भारत में 16 फीसद बढ़े है। यानी सीधे तौर पर कहें तो यह एशिया में तेजी से बढ़ रहा है।

दुनिया भर में सबसे अधिक मामले इस्केमिक हार्ट रोग के होते हैं। यह कुल मामलों का 26.5 फीसद होते हैं। जबकि हाइपरसेंसिटिव हार्ट रोग और क्रानिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज कुल मामलों का क्रमश: 26.2 और 23.4 प्रतिशत होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस्केमिक हार्ट रोग, ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और एल्कोहलिक कार्डियोपैथी पुरुषों में अधिक होती है जबकि हाइपरसेंसिटिव हार्ट रोग और रयूमेटिक हार्ट रोग महिलाओं में अधिक होते हैं।

हाइपरसेंसिटिव हार्ट रोग : हाइपरसेंसिटिव हार्ट रोग की मुख्य वजह उच्च रक्तचाप माना जाता है। इसकी वजह से हाइपरटेंशन होता है। ऐसे में दिल की बीमारी होने की संभावना बढ़ती है जिससे हार्ट फेल होने की प्रायिकता बढ़ती है।

कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे

इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कैंसर के मामले बढ़ने की दर काफी चिंताजनक है। अगले 5 वर्षों में देश में कैंसर मरीजों की संख्या 12 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है। वहीं अगर पूरी दुनिया की बात करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की कैंसर पर काम करने वाली एजेंसी के ताजा अनुमान के मुताबिक 2050 में 35 मिलियन से अधिक नए कैंसर मामले दुनियाभर में देखे जाएंगे, ये 2022 में अनुमानित 20 मिलियन मामलों से 77% अधिक है। 2022 में, लगभग 20 मिलियन नए कैंसर के मामलों में से 9.7 मिलियन की मौत हुई। कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टरों का मानना है कि खान-पान और लाइफस्टाइल इस बीमारी के सबसे बड़े कारण बन गए हैं। तंबाकू-शराब के साथ फास्ट फूड, रेड मीट खाने की बढ़ती आदत और मोटापा कैंसर की बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं। डॉक्टरों की सलाह है कि अगर योग और कसरत के साथ संतुलित भारतीय खान-पान को नियमित रूप से जारी रखा जाए तो कैंसर की आशंका 30 से 40 परसेंट कम हो सकती है।

आईएआरसी के अनुसार भारत में अभी सबसे ज्यादा ब्रेस्ट कैंसर (13.5%) के मामले आ रहे हैं। दूसरे नंबर पर पुरुषों में ओरल कैविटी कैंसर (10.3%), तीसरे नंबर पर सर्विक्स यूटेरस कैंसर (9.4%), चौथे नंबर पर लंग्स कैंसर (5.5%) और पांचवें नंबर पर कोलोरेक्टल कैंसर (4.9%) है। आईएआरसी के 2020 के डेटा के अनुसार भारत में कैंसर के नए पुरुष मरीजों में सबसे ज्यादा ओरल कैविटी कैंसर के केस 16.2%, लंग्स कैंसर के 8% और स्टमक कैंसर के केस 6.3% मिले। महिलाओं में सबसे ज्यादा ब्रेस्ट कैंसर के मामले 26.3%, सर्विक्स यूटेरस के 18.3% और ओवरी कैंसर के 6.7% मरीज हैं। भारत में 2020 के दौरान 13,24,413 नए कैंसर मरीज मिले। इनमें 6,46,030 पुरुष और 6,78,383 महिलाएं थी। 2020 में कैंसर से कुल 8,51,678 मौतें हुईं। इनमें 4,38,297 पुरुष और 4,13,381 महिलाएं थीं।

नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम आईसीएमआर बेंगलुरु के डायरेक्टर डॉ. प्रशांत माथुर ने बताया कि लाइफस्टाइल ही आज कैंसर की मुख्य वजह बनती जा रही है। इसमें शराब-तंबाकू, गुटखा, सिगरेट जैसे प्रोडक्ट के इस्तेमाल के साथ वेस्टर्न खानपान को अपनाना, कसरत न करना और कम नींद लेना शामिल हैं। स्टडी में सामने आया कि बिगड़ी लाइफस्टाइल की वजह से कैंसर मरीज बढ़ रहे हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और लम्बे समय से कैंसर पर रिसर्च कर रहे डॉक्टर राणा पी सिंह कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसके इलाज के लिए नए अस्पताल खुल रहे हैं और सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार कर रही है। लेकिन हमें कैंसर के इलाज के बाद मरीज की पैलिएटिव केयर पर ज्यादा जोर देना होगा। बड़ी संख्या में ऐसे मरीज जिनमें कैंसर पूरी तरह से ठीक हो गया हो उनमें भी कैंसर वापस आ जाता है। इसके लिए इलाज के बाद मरीज के देखभाल पर ज्यादा जोर दिए जाने की जरूरत है।

लगातार बढ़ रही गर्मी

रिपोर्ट के अनुसार, 1 जनवरी से 31 दिसंबर, 2023 के बीच भारत में 365 दिनों में से 318 दिनों में चरम मौसम की घटनाएँ हुईं। इन घटनाओं में 3,287 लोगों की जान चली गई और 2.2 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र तबाह हो गया। 2023 के पहले तीन महीनों में, बिजली और तूफान सबसे ज़्यादा चरम मौसम की घटनाएँ थीं। सीएसई रिपोर्ट के पीछे प्रमुख शोधकर्ताओं में से एक, राजित सेनगुप्ता कहते हैं: “ओलावृष्टि (बिजली और तूफान के अंतर्गत वर्गीकृत) भौगोलिक रूप से सबसे व्यापक घटना थी, जिसकी रिपोर्ट 25 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने दी थी।”

आंकड़ों के अनुसार 2023 भारत का दूसरा सबसे गर्म साल होगा। 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से 26 के 102 मौसम केंद्रों ने रिकॉर्ड तोड़ तापमान दर्ज किया। यह बहुत ज़्यादा बारिश वाला साल भी रहा, जिसमें 23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 69 मौसम केंद्रों ने रिकॉर्ड तोड़ बारिश दर्ज की।

अन्य प्रमुख शोधकर्ता किरण पांडे कहती हैं: “मानवीय लागत के संदर्भ में, हमने पाया है कि भारत में नए आंतरिक विस्थापनों में से करीब 90 प्रतिशत जलवायु-संबंधी घटनाओं के कारण हुए हैं। भारत दुनिया में 20वें सबसे अधिक आपदा प्रभावित देश के रूप में शुमार है।”

ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन के मामले में, भारत का हिस्सा 1994 और 2019 के बीच 115 प्रतिशत बढ़ गया: 2019 में, देश ने 2,647 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर जीएचजी उत्सर्जित किया। ऊर्जा उद्योग सबसे बड़ा उत्सर्जक था: 2019 में कुल राष्ट्रीय कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का 76 प्रतिशत हिस्सा इसका था। आंकड़ों में एसओई यह भी बताता है कि भूमि उपयोग, भूमि उपयोग परिवर्तन और वन क्षेत्र ने 2019 में भारत के उत्सर्जन का 20 प्रतिशत हटा दिया/अवशोषित कर दिया।

सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की सुनीता नारायण ने कहा: “जब हम यह रिपोर्ट जारी कर रहे हैं, तब भी भारत भीषण गर्मी की लहर से गुज़र रहा है। यह ऐसा समय है जब हम बदलती जलवायु के संकट को समझे बिना नहीं रह सकते। इस रिपोर्ट में दिए गए डेटा से यह बात साबित होती है – इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि गर्मी बढ़ रही है और चरम मौसम की घटनाएँ हमारी दुनिया के सबसे गरीब लोगों की कमर तोड़ रही हैं।”

नारायण ने दोहराया: “ऐसे परिदृश्य में, हमारी रिपोर्ट नियोजन के लिए प्राथमिकताओं की ओर इशारा करती है — जल की कमी, जल प्रदूषण, शहरों में वायु प्रदूषण, सार्वजनिक परिवहन में गिरावट, आदि। यहीं पर हमारा ध्यान केंद्रित होना चाहिए। यह एक ऐसी दुनिया है जहाँ जलवायु परिवर्तन के संकट को ध्यान में रखते हुए योजनाएँ तैयार की जानी चाहिए; लेकिन यह एक ऐसी दुनिया भी है जहाँ हमें इस संकट को संबोधित करने का अवसर मिलेगा। हमें ऐसे समाधानों की आवश्यकता है जो समग्र हो।

रिपोर्ट में कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन भी घटा

भारत का नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन (हाइड्रो सहित) वास्तव में 2022-23 और 2023-24 के बीच 1.5 प्रतिशत कम हो गया है – 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में गिरावट देखी गई है। प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय में भी गिरावट आ रही है: 12 राज्य राष्ट्रीय औसत से नीचे हैं। राष्ट्रीय फसल बीमा योजना के तहत बीमित क्षेत्र में योजना शुरू होने के समय की तुलना में 2022-23 में 12 प्रतिशत की कमी आई है। 23 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने ग्रामीण घरों में 100 प्रतिशत नल के पानी के कनेक्शन हासिल नहीं किए हैं, जिसमें पश्चिम बंगाल सबसे पीछे रहने वाले राज्यों में से एक है।

प्रति व्यक्ति बिजली उपलब्धता के मामले में 16 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में यह दर राष्ट्रीय औसत से कम है – उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, झारखंड, असम और बिहार जैसे बड़े राज्य इस सूची में शामिल हैं।

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