राष्ट्रीय राजधानी में भीषण गर्मी में पानी के लिए मारामारी बढ़ गई है। अब भी कई ऐसे इलाके हैं जहां पानी की पाइपलाइन नहीं है, वहां टैंकर से जलापूर्ति की जाती है।
थोड़े से पानी में पूरी जिंदगी जीने को मजबूर लोग घंटों कतार में टैंकर का इंतजार करते हैं और जब टैंकर पानी लेकर पहुंचता है तो युद्ध जैसे हालात बन जाते हैं। यानी जिसमें दम होगा वो पानी ज्यादा ले पाएगा, जो कमजोर है, बुजर्ग है उसे भाग्य पर भरोसा करना होगा।
दिल्ली के तमाम इलाकों में आजकल टैंकर दौड़ते दिखते हैं। सरकारी टैंकर कई कॉलोनियों में लोगों की प्यास बुझाने के लिए पहुंच रहे हैं। कॉलोनियों में टैंकर आने से पहले कनस्तरों की कतार लग जाती है और लोग उसके आसपास पाइप लेकर अधिक से अधिक पानी लेने के भरोसे में बैठे रहते हैं।
कुछ लोग टैंकर चालक से लोकेशन लेते रहते हैं। ऐसा ही लुटियन्स दिल्ली स्थित विवेकानंद कैंप में बुधवार को देखने को मिला। युवा, महिला, बुजुर्ग अपने घर में पानी की उपलब्धता के लिए टैंकर की टकटकी लगाए थे। जैसे ही टैंकर पहुंचा सारे मुंहबोले रिश्ते एक तरफ और पानी की प्यास एकतरफ हो गई।
लाइन लगाने का कोई मतबल नहीं, ताकत और फूर्ति से सब अपनी अपनी जलापूर्ति के लिए जुट गए। उछलते कूदते बड़ी संख्या लोग पाइप लेकर टैंकर पर टूट पड़ते हैं। सब पाइप टैंकर में ऊपर से डालकर पानी खिंचना शुरू करते हैं।
आपाधापी में सड़कों पर बह जाता है काफी पानी
अपने अपने कनस्तरों में पानी लबालब करने की होड़ के बीच बुजुर्ग या महिला भाग्य भरोसे दिखते हैं। इस आपाधापी में काफी पानी सड़कों पर बह जाता है और जो पाइप डालने में कामयाब रहे, वो परिवार में सदस्यों के हिसाब से कनस्तरों में पानी भर लेते हैं। इसी में किसी का काम भर पानी इक्ट्ठा हो गया तो किसी और पर भी रहम कर देता है।
टैंकर से ताबड़तोड़ पानी खींचने का सिलसिला आखिरी बूंद तक चलता रहता है। पानी खत्म होने के बाद शुरू होता है मिन्नतों का दौर…जो ज्यादा भर लिया उससे कम पानी पाने वाले उधार मांगते हैं और वादा करते हैं कि अगली बार जब वो ऐसा करने में सफल रहे तो उन्हें जरूर देंगे।
पानी के लिए रोज करनी पड़ती है जद्दोजहद
उधारी और मेल-मिलाप में प्यास बूझाने का जुगाड़ इन कॉलोनियों का भाग्य बन गया है। विवेकानंद कैंप में रहने वाली वर्षा ने कहा कि पानी के लिए जद्दोजहद रोज की बात है, उनके परिवार में आठ सदस्य हैं, टैंकर आने के साथ तेजी न दिखाएं तो पानी ही नहीं मिलेगा।
परिवार के सदस्यों के संंख्या के हिसाब से ड्रम रखते हैं। यहीं पर पेशे से नाई का काम करने वाले मनोज ठाकुर बताते हैं कि पानी के लिए यूं तो रोज लड़ाई झगड़े होते हैं, लेकिन बाद में मेलमिलाप हो जाता है।
निश्चित है कि जो युवा है वो टैंकर पर जल्दी चढ़ेगा और पानी के लिए पाइप पहले डाल देगा, चूंकि टैंकर के साथ चालक होता है वो झगड़े में पड़ना नहीं चाहता, इसलिए वह स्थानीय लोगों पर ही सबकुछ छोड़ देता है।