UP Weather: अब बादल आएंगे तो बिना बरसे नहीं जाएंगे, IIT कानपुर में चल रहा परीक्षण सात साल बाद हुआ पूरा
बारिश के मौसम में बादलों की आवाजाही तो आपने देखी होगी। कभी-कभी घने बादल छा जाते हैं, लेकिन बारिश के बिना ही वापस चले जाते हैं, लेकिन अब ये बादल बिना बरसे नहीं जा सकेंगे।
आपको सुनकर भले हैरानी हो रही हो, लेकिन परीक्षण पूरा होने के बाद अब इसके प्रदर्शन की तैयारी शुरू हो गई है। इस महीने के अंत तक बादलाें की आवाजाही की संभावना को देखते हुए राजधानी में आम लोगों को इस कृत्रिम बारिश में भीगने का अवसर मिलेगा। प्रदेश में पहली बार कृत्रिम बारिश कराई जाएगी।
आइआइटी कानपुर के प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने परीक्षण पूरा कर लिया है। आइआइटी परिसर में परीक्षण के बाद अब इसके प्रदर्शन की तैयारी शुरू हो गई है। अधिकतम ऊंचाई पर विमान उड़ाने की डीजीसीए (नागर विमानन मंत्रालय) ने आइआइटी कानपुर को इसकी अनुमति दे दी है।
आइआइटी ने इसकी सूचना वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेज दी है। इससे न सिर्फ खेती में मदद मिलेगी, बल्कि हवाओं की गुणवत्ता में सुधार लाकर वायु प्रदूषण भी नियंत्रित किया जा सकेगा।
2017 से चल रहा परीक्षण
2017 से आइआइटी कानपुर कृत्रिम वर्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के बाद तीसरा ऐसा राज्य उत्तर प्रदेश होगा जहां कृत्रिम बारिश कराई जाएगी। अनुमति के बाद अब हम इस क्षेत्र में काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। सेना एयरक्राफ्ट को अब इस कार्य के लिए दुरुस्त कर लिया। आइआइटी के प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी के सहयोग से प्रोजेक्ट को पूरा किया गया है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में पहले परीक्षण किया जा चुका है। प्रदेश में पहली बार परीक्षण किया जाएगा। महानिदेशक नागर विमानन ने पिछले वर्ष 27 अक्टूबर को कृत्रिम बारिश के परीक्षण की अनुमति दे दी है। इसके बाद से तैयारियां युद्ध स्तर पर शुरू हो गईं। वर्षा के परीक्षण के लिए एक विशेष विमान व उपकरणों की आवश्यकता होगी, इसका इंतजाम भी हो चुका है। उप्र राहत आयुक्त की ओर से पिछले महीने की 13 तारीख को परीक्षण के लिए आइआइटी के विशेषज्ञों के साथ बैठक की गई।
कैसे होगी कृत्रिम वर्षा
परीक्षण के सदस्य और आइआइटी के सलाहकार दीपक सिन्हा ने बताया कि ‘क्लाउड सीडिंग’ यानि कृत्रिम वर्षा मौसम में बदलाव करने का एक वैज्ञानिक तरीका है जिसके तहत कृत्रिम तरीके से बारिश करवाई जाती है। कृत्रिम बारिश के लिए विमानों का इस्तेमाल किया जाता है। इनके जरिए सिल्वर आइयोडइड, साल्ट और ड्राई आइस को आसमान में पहले से मौजूद बादलों में छोड़ा जाता है इसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं। इस विधि का प्रयोग कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बारिश कराने और वायु प्रदूषण को कम करने समेत सिंचाई के लिए किया जा सकता है।
पूरे लखनऊ में होगी बारिश
पांच हजार फीट ऊंचाई से होने वाली कृत्रिम वर्षा पूरे लखनऊ में होगी। हजरतगंज, नक्खास से लेकर अमीनाबाद, कृष्णानगर, आलमबाग, दिलकुशा, वृंदावन कालोनी, इंदिरानगर समेत कई इलाकों में कृत्रिम बारिश से लोग भीगते नजर आएंगे।